सबसे खुशहाल शहर में जिंदगी से हार रहे लोग, आंकड़े जानकार नहीं होगा यकीन
कानपुर में आत्महत्या के बढ़ते मामलों ने शहर को झकझोर कर रख दिया है। पिछले 20 दिनों में 21 लोगों ने आत्महत्या की है जिनमें से 18 ने फांसी लगाई है। पुलिस को नौ मामलों में अभी तक आत्महत्या के कारणों का पता नहीं चल पाया है। पढ़ाई का तनाव प्रेम-प्रसंग में विवाद घरेलू कलह और अवसाद आत्महत्या के प्रमुख कारणों में से हैं
कितनों को बर्बाद करती है फरवरी, किसी ने यूं ही इसके दिन नहीं घटाए…… ये पंक्तियां शायद शहर के उन लोगों की पीड़ा को बखूबी बयां कर पाए, जिन्होंने इस माह अपनों को खोया है। दरअसल, देश के सबसे खुशहाल शहर कानपुर में इन दिनों हर रोज जिंदगी से हारकर एक इंसान अपनी जीवन लीला समाप्त कर रहा है।
बीते 20 दिनों में देश के शीर्ष शिक्षण संस्थान में शोध करने वाले छात्र सहित समाज के लगभग हर वर्ग के 21 लोगों ने खुदकुशी की। इसमें आइआइटी का पीचएडी स्कालर सहित जीएसवीएम का मेडिकल छात्र और बीफार्मा का एक छात्र व छात्रा शामिल है। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक बीते 20 दिनों में जिन 21 लोगों ने आत्महत्या की है, उनमें चार विद्यार्थी व तीन महिलाएं हैं।
बड़ी बात यह है कि नौ मामलों में तो पुलिस पता ही नहीं लगा पाई कि आखिर जान देने वाले ने यह कदम क्यों उठाया। चार मामलों में पढ़ाई का तनाव और तीन मामलों में प्रेम-प्रसंग में विवाद आत्महत्या की मुख्य वजह बनकर सामने आया है। इसके अलावा घरेलू कलह और अवसाद भी आत्महत्या की वजह बने हैं। पिछले वर्ष कानपुर में विभिन्न कारणों से 342 लोगों ने आत्महत्या की थी
। जिन 21 लोगों ने आत्महत्या की, उनमें से 18 ने फंदा लगाकर जीवन समाप्त कर लिया। इसके अलावा एक ने नहर में कूदकर व एक ने ट्रेन के आगे कूदकर अपनी जान दे दी, जबकि एक युवक ने जहर खाकर खुदकुशी की।
हर सात में से एक युवा मानसिक तनाव में
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में आत्महत्या के मामलों में सालाना दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है, वहीं छात्रों की आत्महत्या में चार प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। पिछले दशक में छात्रों के जान देने की संख्या 6654 से बढ़कर 13,044 हो गई है।
देश में 15 से 24 वर्ष की आयु के बीच के हर सात में से एक युवा मानसिक अवसाद में है। वहीं, बीते वर्ष आइसी-3 इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में पता चला था कि भारत में हर साल 13 हजार से अधिक छात्र-छात्राएं आत्महत्या करते हैं।
समाज के सवालों के बखूबी जवाब न दे पाने से उठा रहे कदम
पीपीएन कालेज के प्राचार्य व समाजशास्त्री प्रो. अनूप कुमार सिंह बताते हैं कि आत्महत्या का बड़ा कारण समाज के सवाल हैं। जिनका बखूबी जवाब न होने के कारण लोग यह कदम उठाते हैं। वहीं, युवाओं के खुदकुशी करने का सबसे बड़ा कारण अपेक्षाओं और प्रयास के बीच का अंतर है।
प्रो. अनूप के मुताबिक परिवार से अलग होकर एकाकी जीवन गुजरना भी इसका एक प्रमुख कारण है। इस स्थिति में वह भावनात्मक विचारों का आदान प्रदान नहीं कर पाते है और नए परिवेश में खुद को ढाल नहीं पाते हैं। उनके मुताबिक अभिभावक अपने बच्चों की दूसरों से तुलना न करें। वह अपने बच्चों को अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करें
अपेक्षाओं के बढ़ने से लगातार हो रही वृद्धि
मनोचिकित्सक डा. अराधना गुप्ता बताती हैं कि छात्रों की आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण स्वजन की अपेक्षाओं पर खरा न उतरना है। इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई। स्वजन को चाहिए की वह अपने बच्चों को अपेक्षाओं के बोझ तले न दबाएं। जीवन हर घड़ी एक नया मौका देता है।
उनके मुताबिक जब कोई व्यक्ति आत्महत्या के विषय में सोचना शुरू करता है तो इस स्थिति को मनोचिकित्सक सुसाइडल आइडिएशन (आत्महत्या का ख्याल) कहते हैं। मनोचिकित्सकों के मुताबिक जरूरी नहीं कि आत्महत्या के लिए कोई एक कारण हो। कभी-कभी जिंदगी भी भागदौड़ में इतनी समस्याएं सामने आ जाती हैं, जिसके आगे लोग हार मान जाते हैं।
ऐसा तब होता है जब व्यक्ति को मुश्किलों से से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ता। प्रमुख रूप से घेरलू कलह, अवसाद, लाचारी, बीमारी और जीवन में कुछ नहीं कर पाने की हताशा के चलते लोग