Kanya Pujan: नवरात्रि में भक्तगण कन्या पूजन कर उन्हें हलवा-पूड़ी का भोग अर्पित करते हैं. कन्या पूजन में एक बालक को विशेष रूप से हलवा-पूड़ी खिलाने की परंपरा धार्मिक और तांत्रिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है. इसे भैरव स्वरूप मानकर भोजन कराना शक्ति और शिव के संतुलन, पूजन की पूर्णता और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा के लिए आवश्यक माना जाता है.
यह केवल धार्मिक आस्था से संबंधित नहीं है, बल्कि तांत्रिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस परंपरा के पीछे कई गहरे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कारण बताए जाते हैं.
भैरव की पूजा का अनिवार्य अंग
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, देवी की आराधना तभी पूर्ण मानी जाती है जब भैरव (भगवान शिव का रुद्र रूप) को भी प्रसाद अर्पित किया जाए. चूंकि भैरव को देवी दुर्गा का संरक्षक माना जाता है, इसलिए कन्या पूजन में एक बालक को भैरव स्वरूप मानकर भोजन कराने की परंपरा प्रचलित है.
शक्ति और शिव का संतुलन
कन्या पूजन में कन्याओं को देवी का स्वरूप माना जाता है, लेकिन तंत्र परंपरा के अनुसार, शक्ति (देवी) के साथ शिव (भैरव) की उपस्थिति भी अनिवार्य होती है. इसलिए, कन्याओं के साथ एक बालक को भी पूजा में शामिल किया जाता है ताकि शक्ति और शिव का संतुलन बना रहे.
अपूर्णता को दूर करना
मान्यता है कि यदि कन्या पूजन में केवल कन्याओं को भोजन कराया जाए और बालक (भैरव स्वरूप) को न खिलाया जाए, तो यह अधूरा माना जाता है. भैरव को भोजन कराए बिना यह पूजन संपूर्ण नहीं होता और इसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता.
संकटों से रक्षा और सुख-समृद्धि
भैरव को संकटमोचक और रक्षक देवता माना जाता है. यदि कन्या पूजन में बालक को भैरव रूप मानकर भोजन कराया जाए, तो इससे सभी प्रकार के भय, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. साथ ही, परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है.
पौराणिक मान्यता और लोक परंपरा
लोक परंपराओं के अनुसार, देवी उपासना के दौरान बटुक भैरव (बालक स्वरूप भैरव) को भी प्रसाद अर्पित करने से पूजा अधिक प्रभावशाली मानी जाती है. इसे देवी की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है.