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होली पर गुलाल और रंगों की जगह होती है लड्डुओं की वर्षा

Laddu Holi: हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज मनाई जाती है. यह विशेष रूप से ब्रज (मथुरा-वृंदावन) में बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है और इसे होली के त्योहार की शुरुआत के रूप में देखा जाता है. मथुरा-वृंदावन के प्रमुख मंदिरों, जैसे बांके बिहारी मंदिर, द्वारकाधीश मंदिर और राधा रमण मंदिर में विशेष फूलों और गुलाल की होली खेली जाती है. इसके साथ ही लड्डू होली की शुरुआत हो जाती है

लड्डू होली का आयोजन बरसाना में 7 मार्च 2025 को होगा. ब्रज की अनोखी और अद्वितीय होली परंपराओं में से एक लड्डू होली है, जो खासतौर पर बरसाना के श्रीजी मंदिर में मनाई जाती है. इसमें गुलाल और रंगों की जगह लड्डुओं की वर्षा की जाती है, जिससे यह होली और भी खास बन जाती है

लड्डू होली का महत्व

यह होली के रंगीन उत्सवों की शुरुआत मानी जाती है. लड्डू को शुभता और मिठास का प्रतीक माना जाता है, इसलिए इसे प्रेम और आनंद के भाव से खेला जाता है. इस दिन नंदगांव और आसपास के गांवों को होली खेलने के लिए आमंत्रण भेजा जाता है और होली महोत्सव का औपचारिक आरंभ होता है.

 

कैसे मनाई जाती है लड्डू होली? (Laddu Holi)

यह होली बरसाना के श्रीजी मंदिर (राधा रानी मंदिर) में खेली जाती है. मंदिर में विशेष पूजा के बाद श्रद्धालु गुलाल उड़ाते हैं और लड्डू एक-दूसरे पर फेंकते हैं. इस दौरान कृष्ण भक्ति में डूबे भजन-कीर्तन होते हैं और ढोल-मृदंग की गूंज वातावरण को आनंदमय बनाती है.

बरसाना की महिलाएं नंदगांव के गोपों (पुरुषों) को लड्डू फेंककर और हंसी-ठिठोली करके चिढ़ाती हैं, जो लट्ठमार होली की परंपरा का हिस्सा बनती है.

 

लड्डू होली के बाद क्या होता है? (Laddu Holi)

इसके बाद बरसाना और नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जाती है. फिर फाग उत्सव और गुलाल की होली होती है. होली का समापन दौलत चौक (वृंदावन) की रंगभरनी एकादशी के साथ माना जाता है।

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