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नवरात्रि के चौथे दिन होती है मां कूष्मांडा की पूजा, आइए जानते है मां की पूजा विधि, प्रिय भोग।

नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्माण्डा को समर्पित होता है. यह मां दुर्गा का चौथा स्वरूप है, जिसे आदिस्वरूपा या आदिशक्ति भी कहा जाता है।

हिंदू धर्म में चैत्र नवरात्रि का पर्व खास महत्व रखता है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के चौथे दिन यानी कल 2 अप्रैल को मां कुष्मांडा की पूजा का विधान बताया गया है। मां कुष्मांडा को आदिशक्ति और आदिस्वरुपा भी कहा जाता है। मान्यता है कि मां कुष्मांडा की पूजा से साधक को अच्छे स्वास्थ्य और रोग मुक्त जीवन का आशीर्वाद मिलता है।

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नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा का महत्व

8 भुजाओं वाली मां कुष्मांडा देवी को प्रणाम करते हैं क्योंकि इन माता की वजह से ही सभी कार्य संपूर्ण होते हैं और संपूर्ण विश्व को ऊर्जा मिलती है. मनुष्य, जीव-जंतु, ग्रह-नक्षत्र समेत संपूर्ण सृष्टि को माता से ही ऊर्जा मिलती है. माता की पूजा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है और हर कार्य बिना किसी अड़चन के पूरा हो जाता है. देवीभागवत पुराण के अनुसार, छात्रों मां कुष्मांडा देवी की अवश्य पूजा अर्चना करनी चाहिए, ऐसा करने से बुद्धि का विकास होता है और एकाग्रता में वृद्धि होती है.

ऐसा है माता का स्वरूप

मां कुष्मांडा देवी का स्वरूप बहुत ही अलौकिक और दिव्य माना जाता है. मां कुष्मांडा की सवारी सिंह है, जिस पर सवार होकर वे दुष्टों और नकारात्मक शक्तियों का अंत करती हैं. माता की आठ भुजाएं हैं, जिनमें माताएं दिव्य अस्त्र व शस्त्र धारण की हुई हैं. माता ने अपनी भुजाओं में कमंडल, धनुष-बाण, शंख, गदा, चक्र, कमल का फूल और अमृत कलश धारण किया हुआ है. साथ ही मां के पास इन चीजों के अलावा सभी सिद्धियां देने वाली जपमाला भी है

माता कुष्मांडा का भोग

माता कुष्मांडा को मालपुआ बहुत प्रिय है इसलिए माता को मालपुए का भोग लगाएं. भोग लगाने के बाद सभी में अर्पित कर दें या फिर देवी के मंदिर में दे आएं. माता कुष्मांडा की पूजा से भक्तों में ज्ञान की वृद्धि होती है और कौशव व बुद्धि का विकास भी होता है. फल-फूल के अलावा माता को सुहाग का सामान भी अर्पित करें।

मां कुष्‍मांडा पूजा विधि

आज नवरात्रि के चौथे दिन की पूजा यानी माता कुष्‍मांडा देवी की पूजा अर्चना की जाएगी. इनकी पूजा भी अन्य दिनों की पूजा की तरह शास्त्रीय विधि से की जाती है. ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व ध्यान से निवृत होकर पूजा स्थल पर गंगाजल से छिड़काव करें और पूरे परिवार के साथ माता की पूजा अर्चना करें. माता की पूजा में पीले वस्त्र, फल, फूल, मिठाई, धूप-दीप आदि नैवेद्य अर्पित करें. बीच बीच में पूरे परिवार के साथ माता के जयकारे भी लगाते रहें. इसके बाद पूरे परिवार के साथ कपूर और घी के दीपक से माता की आरती करें. फिर अंत में माता से क्षमा याचना करके दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।

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